अमृत कलश

Saturday, October 3, 2015

हाथी और सियार

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हाथी और सियार :-
एक जंगल था |वहां एक हाथी रहता था |वह बहुत सीधा और शांत था |घूमते घूमते वह एक सियार से मिला |सियार से उसकी दोस्ती हो गई |वे अक्सर मिलते आपस में बातें करते | नदी किनारे जब तब जाते |
हाथी ने नदी के पार बड़े बड़े खरबूज देखे |सियार के मुंह में तो पानी आने लगा |वहां कैसे पहुंचा जाए सोचने लगे |हाथी के कहा “सियार तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ |हम उसपार चले जाएगे “| सियार मान गया और
चुपचाप हाथी के ऊपर बैठ गया |दौनो नदी पार पहुंचे |सियार ने खरबूज खाना प्रारम्भ किया और सारे  खा गया|
हाथी के लिए कुछ भी न छोड़ा |हाथी को उसका स्वार्थीपन अच्छा नहीं लगा पर कुछ न बोला |
दूसरे दिन फिर सियार ने उस पार जाने की बात की |हाथी तैयार हो गया |वह सियार को सबक सिखाना चाहता था |उसने सियार से कहा “तुम चुप चाप खाना  खाना पर आवाज नहीं निकालना |पर सियार कम न था |
जानबूझ कर पेट भरते ही जोर जोर से आवाजे निकालने लगा |जैसे ही खेत का मालिक आया वह तेजी से भाग खडा हुआ |हाथी बहुत मोटा  था भाग न सका और रखवाले ने उसे बहुत मारा |
शाम होते ही सियार आ गया और बापिस चलने को कहा |हाथी उससे गुस्सा था और बदला लेना चाहता था |
उसने पीठ पर बैठने को कहा और बीच नदी में आते ही बोला “मुझे बहुत गरमी लग रही है|मेरा मन नहाने का हो रहा  है “ इतना कहकर वह पानी में लोटने लगा |शुरू में तो सियार उसे कस कर पकडे रहा पर जल्दी ही डूबने लगा और कहने लगा “बचाओ मुझे बचाओ “
    हाथी बोला अरे आवाजें निकालो कोई तो तुम्हारी मदद को आही जाएगा |और आगे बढ़ने लगा |
सियार को अपनी गलती का अहसास हुआ |वह रोने लगा और मांफी माँगने लगा |हाथी मन से दयावान था
उसने उसे नसीहत दी और कहा आगे से कभी ऐसा न करना किसी को धोखा न देना |सच्चे मित्र एक दूसरे का साथ देते है |कभी दगा नहीं करते |

आशा





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