अमृत कलश

Saturday, August 29, 2015

संश्राव्य



                                संश्राव्य
कवयित्री श्रीमती आशा लता सक्सेना का काव्य संग्रह “काव्य सुधा “ ऐसी कविताओं का संग्रह है जिसमें हमें जीवन के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं |
हैं मनोभाव
 गागर में सागर
 मन मोहक
मन में उपजते
शब्दों में सिमटते |
कवयित्री बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं तभी तो  इन्होंने भिन्न भिन्न अनुभवों ,भावनाओं ,अंतर्जगत एवं
बाह्य  जगत की खूबियों  ,खामियों  ,सभी पर अपनी कलम चलाई है | वे  एक शिक्षिका रह चुकी हैं ,वह भी विज्ञान अंग्रेजी साहित्य ,व् अर्थशास्त्र की विभिन्न धाराओं की |मूल रूप से साहित्य में उनकी जन्मजात रूचि
रही है |वे एक ऐसी स्त्री हैं जिन्होंने एक गृहणी ,माँ,बहन ,पत्नी आदि सभी पारिवारिक रिश्तों को जिया है | कंप्यूटर के माध्यम से वे सामाजिक राष्ट्रीय व् अन्य सभी गतिविधियों की सूक्ष्मद्रष्टा हैं |यही कारण है कि
उनके काव्य संग्रह “काव्य सुधा” में उनके व्यक्तित्व की ये सारी विविधताएं परिलक्षित हुई हैं |
मेरे बाबूजी ,संयम वाणी का  ,दुविधा , और मैं खो जाती हूँ ,साथ का अनुभव आदि में इनकी झलक देखी जा सकती है |
                         “ मैं अकेला “ में :-
                       अब खुद से हूँ बेजार
                         करनी पर पशेमान
                        मैं ही पकड़ नहीं पाया
                         समय से पीछे रह गया -------यूं ही एकल न रहता |
“परिवार “  में परिवार की परिभाषा सरल शब्दों में देखिये
                                   सच्चे दिल से किया समर्पण
                                           वजन बहुत रखता है
                                          सत्य वचन कर्मठ जीवन से
                                             परिवार सवर जाता है |
कुछ रचनाओं में ईश्वर के प्रति उनका समर्पण भाव भी प्रदर्शित  हुआ है |ओ निराकार ,कुशल चितेरा ,निर्विकार व  एक रूप प्रेम का आदि रचनाओं में  देखा जा सकता है |
        प्रकृति के विभिन्न रंग,आधुनिक जीवन की स्वच्छन्दतापूर्ण गतिविधियाँ ,अनैतिक आचरण पर कटाक्ष वृद्धावस्था एवं एकाकी जीवन की पीड़ा  आदि पर प्रकाश डालती रचनाएं एक ओर जहां पाठकों की भावनाएं उद्वेलित करती हैं वहीं दूसरी ओर कुछ सोचने और कुछ करने के लिए भी प्रेरित करती हैं |
देखिये एक बानगी “आचरण” में:-
              सदाचार घर  के अन्दर
               पर बाहर होता अनाचार
                 घर  में अनुशंसा इसकी
                उन्मुक्त आचरण घर के बाहर |
  इन विविधताओं से परिपूर्ण इस काव्य संग्रह को पढ़ना ,भावनाओं और विचारों  के सागर में डुबकी लगाने का आनंद प्रदान करता है |
         पुनश्च ,मैं काव्य संग्रह “ काव्य सुधा “ की लेखिका श्री मती आशा लता सक्सेना को बधाई देती  हूँ कि काव्य पठन के आज के उपेक्षित युग में अपने काव्य संग्रह “काव्य सुधा को” पाठकों के मध्य पठन की दिशा में आग्रही बना कर प्रस्तुत किया है |
        शुभेच्छु
(  डॉ अरुणा ढोबले )
सेवा निवृत्तसहायक प्राध्यापक
शासकीय माधव विज्ञान महाविद्यालय
उज्जैन (म.प्र )
दिनांक :- १६.७.२०१५

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर अनुशंसा है ! अरुणा ढोबले जी लेखनी को नमन ! उनकी प्रतिक्रिया पुस्तक के प्रति उत्सुकता को जगाती है ! उनका हृदय से धन्यवाद !

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  2. टिप्पणी हेतु धन्यवाद |

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