अमृत कलश

Saturday, October 17, 2015

रानू बंदरिया


रानू बंदरिया

राज कुमार राज बर्मन को जंगल में घूमना बहुत अच्छा लगता था |वह जंगल में घूमता और अपने को प्रकृति
के आँचल में छुपा लेता |हरियाली और पशु पक्षी उसकी कमजोरी थे |वहां जा कर उसे बहुत शांति का अनुभव होता था |
वह स्वभाव से बहुत संवेदनशील और दयालू था |वह किसी का भी दुःख सहन नहीकर पाताथा |
एक दिन जब वह घूम रहा था ,उसने एक बंदरिया को कराहते देखा |शायद किसी शिकारी के बाण से वह घायल होगयी थी |राज ने तुरंत बंदरिया को गोद में उठा कर पैर में से तीर निकाला और उपचार किया |फिर उसे उसके कोटर तक छोड़ आया |
पर रात भर वह सो न सका |बारबार उसे बंदरिया का ही ख्याल सताता रहा |सुबह होते ही वह जंगल की ओर
चल दिया |रानू बंदरिया बाहर बैठी थी |जैसेही उसने अपने बचाने वाले को देखा ,तुरंत उसे बुलाया और अपने कोटर में आने को कहा |
जैसेही राजकुमार अंदर आया ,वहाँ की सुंदरता देख कर हतप्रभ रह गया |उसने देखा की एक बहुत सुंदर लड़की
उसके सामने बैठी थी और उसके हाथ में व् एक पैर में वही पट्टी बंधी थी |बहुत आश्चर्य से राज ने देखा और उसका नाम पूंछा | पहले तो वह शरमाई फिर कल के लिए धन्यवाद दिया और अपना नाम रानू बताया |
राज से रहा नहीं गया और बन्दर का रूप धरने का कारण जानना चाह |रानू ने कहा ,"मैं भी आप के समान ही
एक राजकुमारी हूँ |पहले बहुत सुख से रही |एक दिन जब मैं जंगल में घूम रही थी एक राक्षस ने मुझे पकड़ कर
यहां कैद कर लिया |तभी से मैंयही पर कैद हूं "|
राजकुमार रानू की सुंदरता पर ऐसा मोहित हुआ की शादी की इच्छा उसके मन मैं उठने लगी |वह अक्सर
वहां जाने लगा और एक दिन शादी का प्रस्ताव रखा | रानू भी मन ही मन उससे प्रेम करने लगी थी |
इस लिए उसने एक शर्त पर शादी के लिए हां की |उसने कहा,"मैं दिन भर बन्दर के ही रूप मैं रहूंगी "|राज को क्या
आपत्ति हो सकती थी |दोनों ने शादी कर ली |
राजकुमार अपनी पत्नी के साथ अपने घर आ गया |सबने बंदरिया को देख बहुत हंसी उड़ाई |दूसरे दिन रानी
ने सब को बुलवाया और एक एक बोरा गेहूं बीनने को दिए |रानू ने अपने हिस्से के गेहूं अपने कमरे में रखवालिए
|रात को वह उठी और अपना चोला उतार कर गेहूं बीन कर फिरसे अपने पलंग पर सो गयी |बिने हुए
गेहूं देख कर सब को बहुत आश्चर्य हुआ | तीसरे दिन चक्की पर आटा पीसना था |रात को उठ कर उसने अपना चोला
उतारा और चक्की पीसने लगी |रानी ने धीरे सेखूटी पर
टंगा चोला उठा कर छुपा दिया |
जैसेही काम समाप्त हुआ रानू ने अपना चोला खोजा |वह नहीं मिला |उसे बहुत गुस्सा आया | वह रोने लगी |
इतने में राजकुमार की नींद खुल गई |राज ने रोने का कारण पूंछा | जब सारा माजरा समझा ,जोर जोर से हँसने लगा
और रानू को समझाया की अब इस रूप मेंरहने की क्या आवश्यकता है ,राक्षसतो कब का मर चूका |रानू को विश्वास
नहीं हुआ |धीरे धीरे जब राज की बात समझ आई तब बड़ी मुश्किल से वह सोई |
सुबह उठ कर उसने सबके पैर छुए |सबने उसे बहुत सारे उपहार दिए और ढेरसा आशीर्वाद| यह सच है की कोई
भी काम सरलता से किया जा सकता है यदि मन में पक्की इच्छा हो |अब वे दोनों जंगल में जाकर प्रकृति का आनंद
लेने लगे और जरूरत मंद की सेवा करने लगे |रानू अब बहादुर होगई थी और किसी से नहीं डरती थी |
आशा

4 comments:

  1. सुंदर कृति, पढ़कर बचपन की याद आ गई दादी से कुछ ऐसी ही कहानियाँ सुना करती थी

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद मालती जी टिप्पणी के लिए |

      Delete
  2. सुंदर कृति, पढ़कर बचपन की याद आ गई दादी से कुछ ऐसी ही कहानियाँ सुना करती थी

    ReplyDelete
  3. मनोरंजक कहानी ! बड़े दिनों के बाद इतनी रोचक कहानी पढ़ी ! बहुत आनंद आया !

    ReplyDelete