अमृत कलश

Friday, October 23, 2015

तीन चूहे



तीन चूहे

तीन चूहे थे |वे अपने आप को बहुत चतुर समझते थे |प़र वे बिल्ली से बहुत डरते थे |हर समय अपने आप को उससे बचाने की कोशिश में लगे रहते थे |एक दिन उनने सोचा की क्यों न वे अपने मकान बना लें रोज रोज का झंझट ही
समाप्त हो जाएगा |
पहले चूहे ताऊं ने अपना मकान कागज का बनाया ,
उसमें रंग बिरंगा दरवाजा लगवाया |
ख़ुद को बहुत सुरक्षित पाया |
दूसरे चूहे ठाऊँ ने एक किला बनवाया,
आसपास की खाई में दूध भरवाया ,
किले में अपने को अधिक सुरक्षित पाया |
तीसरा चूहा दाऊं था ,
वह बहुत असमंजस में था ,
आर्कीटेक्ट से नक्षा बनवाया ,
सीमेंट रेत से घर बनवाया ,
लोहे का दरवाजा लगवाया ,
अन्दर ख़ुद को सुरक्षित पाया |
बिल्ली भी कुछ कम नहीं थी ,
उसने एक तरकीब सोची,
पहुंची पहले ताऊं के घर ,
बोली "बेटा ताऊं ,बेटा ताऊं ,
क्या मैं घर के भीतर आऊं ",
ताऊं बोला " मौसी आज नहीं आना ,
मुझको है बाहर जाना "
पहले तो वह लौट चली ,
पर कुछ सोच लौट पड़ी ,
गुस्से मैं पंजा फैलाया ,
ताकत से घर पर दे मारा ,
कागज का मकान नष्ट हो गया ,
ताऊंबिल्ली का भोजन हो गया |
पेट भर गया जब बिल्ली का ,
उसका मूड ठीक हो गया |
दुसरे दिन बिल्ली देर से उठी ओर इधर उधर घूमने लगी |पर कुछ समय बाद उसे भूख सताने लगी उसको ख्याल आया की क्यों न वह ठाऊं के घर जाए ओर उसे अपना भोजन बनाए |
वह जल्दी से किले तक पहुंची ,
खाई देख हुई भोंच्क्की ,
केसे खाई पार करे ,
ओर किले तक पहुंचे ,
कुछ क्षण तक वह खडी रही,
फिर सारा दूधचट कर गई ,
ओर खाई पार कर गई |
एक छलांग में दीवार फांद कर,
ठाऊं को भी चट कर गई |
बात तीसरे दिन की है |जब बिल्ली को भूख लगी तब वह बेचैन हो रही थी | अब उसे दाऊं की याद आनेलगी |
ओर वह उसके घर की ओर चल दी |
जैसे ही उसने घर देखा ,
लोहे का दरवाजा देखा ,
घूम घूम बाहर से घर देखा ,
कोइ राह नजर न आई ,
उसके मन में उदासी छाई |
फिर भी हिम्मत न हारी,
मीठी आवाज में वह बोली ,
दाऊं दाऊं प्यारेदाऊं ,
"क्या नया घर नहीं दिखलाओगे ,
अपने घर नहीं बुलाओगे ",
दाऊं बहुत सीधा था वह भूल गया कि अपने घर में ही वह बहुत सुरक्षित है |घर दिखाने की लालसा में उसने
लोहे का दरवाजा खोल दिया |
जैसे ही बिल्ली अन्दर आई ,
मुंह से लार उसने टपकाई ,
फुर्ती से कूदी दाऊं पर ,
पंजे में कस कर पकड़ लिया ,
उसे भी पेट के हवाले किया |
सारे मकान खाली रह गये ,
तीनों चूहे नष्ट हो गए ,
बिल्ली मौसी से कोई भी नहीं बच पाया |तीनों की चतुराई बिल्ली के आगे न चल सकी

6 comments:

  1. बहुत रोचक और शिक्षाप्रद कथा..

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  2. धन्यवाद कैलाश जी टिप्पणी के लिए |

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  3. बहुत ही सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति, आभार।

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  4. धन्यवाद राजेन्द्र जी |

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  5. बहोत ही सुन्दर चतुराई का भी अंत आ सकता है उसमे इंसान को भुलना नही चाहीए | सादर आभार

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  6. धन्यवाद इलयास भाई टिपण्णी के लिए |

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