अमृत कलश

Sunday, October 18, 2015

ऐसे देखा वन राज





ऐसे देखा वनराज

मुझे नई जगह देखने और नए स्थानों पर घूमने मेंबहुत आनंद आता है |कुछ समय पूर्व गुजरात जाने का अवसर मिला |सोमनाथ और द्वारिका जाना है ,सोच कर ही मन प्रफुल्लित होने लगा |जल्दी ही आरक्षण भी करवा लिया |
जैसे ही ट्रेन चली ,लगा बहुत दिनों की तमन्ना बस पूरी हुई जाती है |ट्रेन की गति के साथ ही मन भी कल्पना जगत में विचरण करने लगा |कब नींद आई पता ही नहीं चला |जब नींद खुली अहमदाबाद आने वाला था |जल्दी से
सामान समेटा और स्टेशन पर उतर गए व् बस स्टॉप की और चल पड़े |
द्वारिका जाने वाली बस तो जा चुकी थी |सोमनाथ जाने वाली बस रात को आठ बजे जाती थी |अतः दिन भर अहमदाबाद घूमा |ठीक समाय पर बस स्टॉप आ कर अपनी आरक्षित सीट पर बैठ गए |इतने थके हुए थे कि पता ही नहीं चला कि कब अहमदाबाद पीछे रह गया |
नींद के आगोश में ऐसे खोये कि बेरावल आ कर ही आँख खुली |वहां से सोमनाथ के लिए एक मोटर साइकल
पर बने टेम्पो की सबारी की और गन्तब्य तक पहुंचे |सुबह कि ठंडी हवा ,समुद्र का किनारा और मीठा नारियल
पानी ,मन को बहुत भाया |पास के ही होटल में ठहर कर थोडा विश्राम किया और सोम नाथ जी के दर्शन किये |
अब हमारे पास सारा दिन पड़ा था |सोचा क्यों न गिरी अभ्यारण्य जाएं | होटल वाले ने टेक्सी की व्यवस्था कर
दी |हम फिर से बेरावल होते हुए गिरी अभयारण्य की और चल दिए|
चारो और हरियाली और पक्षियों का कलरव ,मन में उत्साह भरने लगा |रास्ता कब कट गया पता ही नहीं चला |
वहां जा कर टिकिट खरीदे और सफारी में जाने के लिए अपने नम्बर का इंतजार करने लगे |इंतज़ार के ये क्षण
बहुत कठिन थे |कुछ लौट कर आने वालों से पता चला कि वे सिंह नहीं देख सके |वह शायद भोजन कर कहीं निकल गया था |
मन में उदासी छाने लगी |सोचा यदि वनराज ही नहीं दिखा तो इतनी दूर आने से क्या लाभ |इतने में जीप आ
गयी और उस पर सवार हो अपने गंतब्य कि और चल पड़े |हमारे साथ ८ लोग और भी थे |साथ आया गाइड बता
रहा था "रात को सिंह राज ने बड़ा शिकार किया था |अब कहीं सो रहा होगा |मैं यदि सिंह के दीदार न करा पाऊं
तो कैसा गाइड ?आप तो निश्चिन्त रहो साहब वह हमें जरूर मिलेगा |"
जीप में अब हम छोटी २ पगडंडियों पर घूम रहे थे |चारों और धूलही धूल,हरियाली तो केवल नदी के किनारे ही
थी |बड़े पेड़ जरूर दिखाई दे रहे थे |एक जीप लौट कर आ रही थी |गाइड ने उससे बात कीऔर तुरंत ही अपना रास्ता बदलने को कहा |हम लोगों को सुई पटक सन्नाटा बनाए रखने को कहा |जीप की गति बहुत धीमी करवा ली |
जैसे ही जीप रुकी हमने देखा कि लगभग १० फिट कि दूरी पर वनराज सोया हुआ था |उसके विशालकाय शरीर
में
न तो कोई हलचल थी न ही आवाज |वह शिकार खा कर दोपहर कि धूप का आनंद ले रहा था |उसने धीरे से आँखे
खोलीं ,इधर उधर देखा और फिर से सोने कि मुद्रा में आ गया |कल्पना के परे था कि इतना शांत वन राज होगा |तभी गाइड नीचे उतरा और एक छोटा सा कंकड उसकी और फेका |वनराज ने सर उठाया ,हुनकर भरी और फिर आँख बंद कर ली |
हमारी जीप धीरे २ रेंगने लगी |वनराज पर इसका कोइ प्रभाव नहीं था |वह तो अपने आराम में इतना ब्यस्त था कि किसी का आना जाना उसके लिए बेमानी था |उसका आकार प्रकार देखते ही बनता था |सच में वन का राजा अपने आप में बेमिसाल था |
फिर जीप ने गति पकड़ी और आधे घंटे बाद हम गिरी अभयारण्य के बाहर थे |आज भी वह द्रश्य आँखों के सामने
घूम जाता है |
आशा

1 comment:

  1. वनराज के दर्शन कितने रोमांचक होंगे इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है ! सफारी पर जाएँ और वनराज ही ना दिखे तो बड़ी निराशा होती है ! बहुत बढ़िया संस्मरण ! बांधवगढ़ की यात्रा का स्मरण हो आया !

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