मेरे मन की :-
आदरणीय सुधिजन मुझे अपना सप्तम काव्य संकलन
(काव्य कुञ्ज ) आप से साँझा करने में अत्यंत प्रसन्नता हो रही है |बचपन
से ही मुझे साहित्य पढ़ने पढ़ाने में बहुत रूचि थी |पर तब समय के
अभाव में लेखन कार्य से दूर रही |सेवा निवृत्ति के बाद मुझे पर्याप्त
समय और प्रोत्साहन मिला |लिखना प्रारम्भ किया |कम्प्युटर
पर ब्लोगिंग करने से अधिक उत्साहित हुई जिसका परिणाम आप सब के सम्मुख प्रस्तुत है |
मुझे छोटी छोटी बाते प्रभावित करती हैं जिन्हें कविता में प्रगट करने की
कोशिश करती हूँ |मेरी रचनाएं
बहुआयामी
हैं|भाषा सरल और
बौधगम्य है |भावों का प्रवाह शब्दों का लिवास पहन कविता का
रूप ले लेता है|
“भावों
की अभिव्यक्ति
सहज सरल शब्दों में हो
आकृष्ट सभी को करती
कविता में जान फूंकती “|
(अभिव्यक्ति )
प्रकृति के सान्निध्य में लेखन को अधिक बल
मिलता है |सामाजिक बदलाव भी अछूते नहीं है |विविध विषयों पर
लिखना मुझे अच्छा लगता है |
बानगी देखिये :-
(तृष्णा )
सुख दुःख का है खेल जिन्दगी
धूप छाँव का मेल जिन्दगी |
(मधुमास में )
पीत वसन से सजी धरा
हरियाली में रंग पीला भरा
जीवन का रंग हुआ वासंती
अनंगमय हुई धरती |
(एक रूप प्रेम का )
मीरा ने घर वर त्यागा
जब लगन लगी मोहन से |
(शैशव का वैभव )
जब कभी तस्वीरें धुंधली होने लगतीं
देर नहीं लगती उन पर से धुल झाड़ने में |
(जाना चाहती हूँ )
जाना चाहती हूँ बहुत दूर
इस भव सागर से
सब कार्य पूर्ण होगये
जो मुझे करने थे |
मुझे अपने घर से जितना प्रोत्साहन मिला है उसे
शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता |मेरी माँ
कवियित्री
श्रीमती ज्ञान वती सक्सेना “किरण “ने जो बीज
मुझमें बोए थे उन्हें पुष्पित पल्लवित करने में मेरी बहिन (कवियित्री और लेखिका) साधना वैद का सहयोग भी
मैं भुला नहीं सकती |
मैं आभारी हूँ --------------
की जिनने मेरी पुस्तक“काव्य सुधा “(सातवा काव्य संकलन )को पढ़ कर अपना अभिमत दिया
है और अपना अमूल्य समय देकर मुझे
गौरान्वित किया है |
डॉ अरिहंत जैन व उनके समस्त सहयोगी जिनने पुस्तक प्रकाशन में सहयोग
दिया है उनकी आभारी हूँ | कीर्ति प्रिंटिंग प्रेस ,उज्जैन ने प्रकाशन हेतु मुझे जो
पूर्ण सहयोग दिया है उस हेतु धन्यवाद |
(
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