एकता –
खिंच रही थी घर में दीवार |पर
बटवारा होता कैसे संभव |अचानक बटवारा रूकने के पीछे छिपे कारण का खुलासा नहीं हो पाया था तब |एक दिन सब आँगन में बैठ बातें कर रहे थे |
उस दिन सच्चाई सामने आई |घर में दो सदस्य थे ऐसे जो पूर्ण रूप से
आश्रित थे | बिलकुल असमर्थ
कोई काम न कर पाते थे |बुढापे से जूझ रहे थे |प्रश्न था कौन उन्हे
सम्हाले ?तब एक ने सलाह दी थी क्यूँ न इन्हें वृद्ध आश्रम में पहुचा दें |मिल कर आ
जाया करेंगे |पर छोटे का मन नहीं माना |बात वहीं समाप्त हो गई थी तब |
तब से रोज लड़ाई होती थी उन की देखरेख के लिए |जब अति हो गई फिर से बटवारे की बात उठी
|दरार दिलों में और बढ़ी |ललक अलग रहने की
जागी| फिर बात वहीं आकर अटकी उनकी देखरेख कौन करे ?
अचानक कोरोना का कहर की दहशत से न उबार पाए आसपास के एकल परिवार | पर उनके
परिवार में एकता रंग लाई एक दूसरे की मदद से
कठिन समय से उभरने की शक्ति काम आई |
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