अमृत कलश

Sunday, April 12, 2020

एकता


एकता –
खिंच रही  थी घर में दीवार |पर बटवारा होता कैसे संभव |अचानक बटवारा  रूकने के पीछे छिपे कारण का खुलासा नहीं हो पाया था  तब |एक दिन सब आँगन में बैठ बातें कर रहे थे |
उस दिन सच्चाई सामने आई |घर में दो सदस्य थे ऐसे जो पूर्ण रूप से आश्रित थे | बिलकुल असमर्थ
कोई काम न कर पाते थे |बुढापे से जूझ रहे थे |प्रश्न था कौन उन्हे सम्हाले ?तब एक ने सलाह दी थी क्यूँ न इन्हें वृद्ध आश्रम में पहुचा दें |मिल कर आ जाया करेंगे |पर छोटे का मन नहीं माना |बात वहीं समाप्त हो गई थी तब |
तब से रोज लड़ाई होती थी उन की देखरेख  के लिए |जब अति हो गई फिर से बटवारे की बात उठी |दरार दिलों में और बढ़ी  |ललक अलग  रहने  की जागी| फिर बात वहीं आकर अटकी उनकी देखरेख कौन करे ?
अचानक कोरोना का कहर की दहशत से न उबार पाए आसपास के एकल परिवार | पर उनके परिवार में एकता रंग लाई एक दूसरे की  मदद से कठिन समय से उभरने की शक्ति काम आई |
     सभी ने वादा किया अब अकेले रहने की कभी न सोचेंगे |एक साथ रहेंगे कठिनाई का सामना आपसी समन्वय से  बहादुरी से करेंगे |
आशा


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