अमृत कलश

Thursday, January 19, 2023

एक संस्मरण

 

एक दिन बाजार से कुछ सबजी लाने को कहा इनका कोई मूड न था|

इन्होंने कहा  तुम ही क्यों नहीं लातीं या किसी से मंगवालो |

पहले तो बहुत गुस्सा आया फिर खुद ही चल दी सब्जी लेने |

पर जल्दी में थैली लाना तो भूल ही गई थी |जब सब सब्जियां खरीद लीं पेमेंट कर दिया तब सब्जी वाले ने पूछा किस में सब्जी डालूँ |तब मुझे याद आया कि थैली तो घर पर ही रह गई मुझे बड़ी कोफ्त हुई सोचा क्यूँ न यहीं से एक थैली खरीदली  जाए यदि घर थैली लेने गई तो बहुत देर हो जाएगी |तभी एक बहिन जी मेरी ओर आती दिखाई

दीं |उन्हों ने आवाज दी अरे आपका झोला तो राह में ही गिर गया था|

मुझे अपनी लापरवाही पर बहुत शर्मिंदगी नजर आई खैर उनसे थैली ली और धन्यवाद दिया |जैसे तैसे सब्जी ली और घर की ओर चल दी |मन ही मन सोचती जा रही थी मैं भी कितनी लापरवाह हूँ दूसरों की गलतिया खोजती रहती हूँ पर मैं भी उतनी ही लापरवाह हूँ |

आशा

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