अमृत कलश

Thursday, June 18, 2015

दयालू चोर



                   “ दयालू चोर “
चोरों का एक समूह चोरी के उद्देश्य से एक गाँव में आया |
यहाँ वहां घूम घूम कर अंदाज लगाया की कहाँ चोरी  करना उचित होगा |जब रात हो गई
अन्धकार धना होने लगा वे बिना आहट किये एक मकान के पीछे पहुंचे |वहां इतनी शान्ति थी
कि लग रहा था पूरा मकान खाली होगा  |कुदाल की सहायता से दीवार में मोखला बनाया और
अन्दर कदम रखे परन्तु हलकी आहट से सोये हुए घरवाले जाग गए |अतः जिस रास्ते से आये थे
 भाग निकले |हाथ कुछ भी न लगा |
                            खबर गलत निकली निराशा हाथ लगी पर सोचा एक कोशिश
तो की ही जा सकती है|गाँव के दूसरे छोर पर एक कच्चे मकान में छेद किया और अन्दर कदम रखे |
देखा एक व्यक्ति फटे कपड़ों में लिपटा जमीन पर सो रहा था |आसपास कुछ  टूटे टाटे बर्तन थे |
वह आदमी न हिला ना डुला ना ही कोई प्रतिक्रया की |चोर ने दरवाजा खोला और बाहर जाने लगा |पीछे से आवाज आई अरे भाई आए हो तो  कुछ दे कर जाओ जिससे कल रोटी की जुगाड़ हो सके |
पहले तो चोर चौंका फिर उसकी गरीबी देख मन में दया उपजी |जेब से एक रुपया  निकाला और फैक कर चल दिया  |सोच रहा था दिन ही खराब था कमाया तो कुछ नहीं और जेब भी खाली हो गई |
आशा

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