स्टेशन रोड पर एक कुआ था |उसका जल बहुत मीठा था |पूरे गाँव की पीने के पानी की पूर्ति उसी कुए से होती थी |
एक स्टेशन मास्टर जब वहां ट्रांसफर हो कर आए कुए पर अथाह भीड़ देख अपने स्टाफ पर बहुत नाराज हुए |उन्हों ने पूंछा यह क्या है ?इतनी सारी भीड़ क्यूं जमा है ?
एक कर्मचारी ने बताया "यह मीठे पानी का कुआ है |पूरे गाँव की जल पूर्ती यहीं से होती है "
स्टेशन मास्टर एक दम गुस्से से फट पड़े बोले "यादव इसी समय जाओ और पूरे कुए को जाल से ढकवादों और पुलिस गार्ड की व्यवस्था करो |कल से एक भी व्यक्ति यहाँ नहीं दीखना चाहिए"|
| यादव बेचारा क्या करता वह उठा और आर्डर की पूर्ति करने के लिए चल दिया |
दूसरे दिन नियमानुसार जब गाँव वाले पानी भरने आए उन्हें रोक दिया गया |वे बहुत दुखी हुए |गाँव के एक बुजुर्ग ने समझाने की कोशिश भी की पर वार्ता असफल रही |लोगों ने स्टेशन मास्टर को जी भर कर कोसा
और बुराभला कहा |पानी की पूर्ति के लिए गाँव के लोगों को मीलों दूर जाना पड़ता पर क्या करते मजबूर थे
अचानक वह पानी खारा हो गया और पीने योग्य नहीं रहा |अब स्टेशन मास्टर को भी मीठे पानी के लिए
इधर उधर भटकना पड़ा |पर उसे क्या ?उसके पास तो पोटर थे जो काम करते थे |
एक दिन स्टेशन मास्टर की पत्नी बीमारी से चल बसी |लोगों को पता चला |पर एक भी व्यक्ति नहीं आया अर्थी को कंधा देने के लिए | अर्थी को ठेले पर रखकर अकेले ही श्मशान ले जाना पडा और दाह संस्कार करना पड़ा |तब उसे अनुभव हुआ की समाज में रहने के भी कुछ नियम होते हैं |सब को अपने सुख दुःख बांटने होते हैं |समय सदा एक सा नहीं रहता |परिवर्तन होते रहते हैं |
आशा
एक स्टेशन मास्टर जब वहां ट्रांसफर हो कर आए कुए पर अथाह भीड़ देख अपने स्टाफ पर बहुत नाराज हुए |उन्हों ने पूंछा यह क्या है ?इतनी सारी भीड़ क्यूं जमा है ?
एक कर्मचारी ने बताया "यह मीठे पानी का कुआ है |पूरे गाँव की जल पूर्ती यहीं से होती है "
स्टेशन मास्टर एक दम गुस्से से फट पड़े बोले "यादव इसी समय जाओ और पूरे कुए को जाल से ढकवादों और पुलिस गार्ड की व्यवस्था करो |कल से एक भी व्यक्ति यहाँ नहीं दीखना चाहिए"|
| यादव बेचारा क्या करता वह उठा और आर्डर की पूर्ति करने के लिए चल दिया |
दूसरे दिन नियमानुसार जब गाँव वाले पानी भरने आए उन्हें रोक दिया गया |वे बहुत दुखी हुए |गाँव के एक बुजुर्ग ने समझाने की कोशिश भी की पर वार्ता असफल रही |लोगों ने स्टेशन मास्टर को जी भर कर कोसा
और बुराभला कहा |पानी की पूर्ति के लिए गाँव के लोगों को मीलों दूर जाना पड़ता पर क्या करते मजबूर थे
अचानक वह पानी खारा हो गया और पीने योग्य नहीं रहा |अब स्टेशन मास्टर को भी मीठे पानी के लिए
इधर उधर भटकना पड़ा |पर उसे क्या ?उसके पास तो पोटर थे जो काम करते थे |
एक दिन स्टेशन मास्टर की पत्नी बीमारी से चल बसी |लोगों को पता चला |पर एक भी व्यक्ति नहीं आया अर्थी को कंधा देने के लिए | अर्थी को ठेले पर रखकर अकेले ही श्मशान ले जाना पडा और दाह संस्कार करना पड़ा |तब उसे अनुभव हुआ की समाज में रहने के भी कुछ नियम होते हैं |सब को अपने सुख दुःख बांटने होते हैं |समय सदा एक सा नहीं रहता |परिवर्तन होते रहते हैं |
आशा
हृदयस्पर्शी सत्य कथा ! क्रूर स्टेशन मास्टर को ग्रामीणों ने खूब सबक सिखाया ! ऐसे निर्मम लोगों को यही भाषा समझ में आती है ! बढ़िया संस्मरण !
ReplyDeleteपसंद के लिए धन्यवाद साधना
ReplyDeleteVery emotional and with great divine message.
ReplyDeleteThank you madam. sadar naman.
aap logon ko dhanyvaad |
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