अमृत कलश

Thursday, May 19, 2016

सिंहस्थ एक नजर में




समय तो बहुत लगा तैयारी में चिंतन मंथन में |दिन रात जाग जाग कर सिंहस्थ की रूप रेखा तैयार की गई और उसे निश्चित रूप दिया गया |फिर भी चिंता रही इतना बड़ा आयोजन किस प्रकार सफल हो पाएगा |
दिन रात की महनत रंग लाई व्यवस्था चाक चौबंद रही |महाकुम्भ अब अपने अंतिम पड़ाव तक पहुँच गया है
मौसम का मिज़ाज  तल्ख़ था पर आस्था उस पर भारी रही |जनमानस ने धर्म गुरुओं के दर्शन लाभ का भरपूर आनंद  उठाया |मोक्ष दायनी क्षिप्रा में स्नान कर पुण्यलाभ लिया |कुछ विघ्नसंतोषी भी आए थे
कैसे सह् पाते  इतने बड़े आयोजन की सफलता |कुछ न कुछ तो कहना था और विवादों में
घिरा रहना था |वे इस में ही प्रसन्न थे |खैर वे अपना कार्य करते रहे पर महाकुम्भ की छवि धूमिल न कर सके |२१ तारीख को महाकुम्भ का समापन अंतिम शाही स्नान के साथ हो जाएगा |पूरा महीना कहाँ निकल गया मालूम ही नहीं पड़ा |शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां महमान न आए हों | जय महाकाल
आशा



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