अमृत कलश

Friday, May 22, 2020

हल क्या हो |


आज मनीषा बहुत उदास थी |मैंने पूंछा वह कारण नहीं बता पाई | अचानक फूट फूट कर रोने लगी | पास बैठाया मैंने  और कहा” मन में जो कुछ है बता दो तो मन भी हलका हो जाएगा और यदि मेरे लायक कोई मदद होगी तो वह भी संभव हो पाएगी |”कुछ देर बाद रुंधे गले से उसने वह कहानी मुझे बताई |उसकी लड़की एक गाँव में ब्याही थी | सास ननद आए दिन उसे ताने देती थीं |चैन से रहने नहीं देती थीं |कभी माँ को अपशब्दों की सौगात देती थीं |कोई भी बहाना ढूंढ ही लेतीं थी  |सुबह होते  ही वही झिकझिक शाम कब हो जाती थी पता ही नहीं चलता था |कल तो हद ही हो गई |सास ने बाल पकड़ दीवार से सर को ठोका | खून निकलने पर भी ध्यान नहीं दिया | वह चक्कर खा कर बेहोश हो गई |यही बात मनीषा को साल रही थी|अच्छी खासी दसवी पास लड़की की क्या दशा हो गई थी ससुराल जा कर | बड़ी बहन का हालचाल देख बबली ने तो शादी से साफ इनकार ही कर दिया |इसी से मनीषा उलझन में थी कि क्या करे |मेरे पास भी कोई हल न था इस बगावत का |मैंने उसे समझाया पहले पूरी पढाई करवाओ फिर शादी की बात चलाना |जब अपने पैरों पर खडी हो जाएगी उसमें आत्म सम्मान जाग्रत होगा और अपनी घर गृहस्थी  सम्हाल पाएगी |
आशा

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