आज हरियाली तीज है | बच्चे सब अपने अपने घर के हो गए है |मेरे घर में सन्नाटा बिखरा है |जब छोटी थी इस त्यौहार को बहुत उत्साह से
मनाया जाता था |सुबह से ही गहमागहमी रहती थी घर में |
आटे से शिव पार्वती और गणेश
जी बनाते थे |फिर नए कपडे सिल कर उन्हे गोटे से सजाते थे |फिर पीली मिट्टी की सात
कंकड़ी ले कर पटे पर चौक पूर कर रखते थे |फिर
होती थी तैयारी प्रारम्भ खुद को सजने सवरने
की |घर में रंगी लहरिये की चुन्नी पहनना मुझे बहुत भला
लगता था |
उस चुन्नी में भी गोटा लगा कर और सुन्दर रूप दिया जाता था | फिर महावर
से पैर सजाती हाथों में मेंहदी लगा कर खुश
हो कर सब को दिखाती थी |
पूजन के लिए सारी तैयारी हो जाने पर एक थाली में सब पूजन की सामग्री
इकठ्ठी करती थी |अब प्रारम्भ होता कहानियों का सिलसिला यह जब तक पांच कहानियां
पूर्ण न हों निरंतर चलता रहता था |फिर पूड़ी पुओं का भोग लगाती और आरती करती थी| फिर आँगन में पड़े
झूले पर बैठ कर सावन के गीत सहेलियों के साथ गाती थी |ऊंची ऊंची पैगे भर कर झूलने
का पूरा आनंद उठाती थी |
अब वे त्यौहार कहाँ ? ना ही
है उत्साह मन में |सभी आधुनिकता की भेट चढ़ गया है |
आशा
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