अमृत कलश

Friday, April 27, 2012

चाँद और भारत के लाल

वह सागर सुत कहलाता है ,ये धरती के लाल 
उससे अंधियारा घबराता ,इनसे डरते काल |
वह रजनी के शांत अंक में ,पन्द्रह दिन को खो जाता 
ये हर दम सचेत रहते हैं ,सुख से भी तोड़ा नाता |
वह तारों को ही प्रकाश दे ,उनका सदा बढ़ाता मान 
ये  भारत के हर लाल को ,स्नेह शील का देता ज्ञान |
उसका तो  यश रजनी गंधा ही ,बस  कहने वाली है 
इनके  यश की मधुर सुरभि ,इस विश्व वृक्ष की लाली है |
वह केवल शीतलता का ही ,एक शील वृत्त धारी है 
पंचशील धारी सन्यासी ,इनकी महिमा न्यारी है \|
वरुण देव के शांत अंक में ,उसने संरक्षण पाया 
सत्य  अहिंसा के प्रतीक ,बापू का इनने संरक्षण पाया |
उन्शें देख चकवी रोती है ,कली  कली शर्माती है
इन्हें देख सब प्रमुदित होते ,माँ की पुलकित छाती है |
उसमें है कलंक की छाया ,निष्कलंक कहलाते ये 
वह सुर ये मानव फिर भी ,उसमें इनमें नाते हैं \
भारत  माँ के पार्श्व देश में ,जो सागर है लहराता 
नाम पिता का इनके ,उसकी बूँद बूँद में मिल जाता |
चाँद और मोती ही, भ्रातृ भाव यों फैलाते
एक  अंक में पले बढ़े,ये सगे सहोदर कहलाते |
इस  नाते से चन्दा मामा ,नेहरू जी का है चाचा
भारत के बच्चे बच्चे गाते ,जय जय नेहरू चाचा |
किरण














8 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति ....

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    1. टिप्पणी हेतु आभार |

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  2. मम्मी की कल्पना और भावभूमि सदैव विलक्षण ही होती थी ! कितना खूबसूरत लिखती थीं वे ! इस रचना को पढ़ कर मन बाग-बाग हो गया ! बहुत ही सुन्दर !

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    1. टिप्पणी हेतु धन्यवाद

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  3. टिप्पणी हेतु धन्यवाद

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  4. .


    आदरणीया मां'जी की रचनाएं पढ़ने का अवसर देने के लिए आपका आभार आशा अम्मा !
    सादर प्रणाम !

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. राजेन्द्र जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
    आशा

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