अमृत कलश

Monday, August 10, 2015

एक कटु सत्य

             एक कटु सत्य
कभी सोचा न था खून इतना सफेद हो जाएगा |आज की आधुनिक  सभ्यता  में पाले गए बच्चे इस हद तक गिर जाएंगे की बड़े छोटे का लिहाज भी भूल जाएंगे |सिखाएंगे की बच्चों में पाला जाता है डबल नौर्म्स |भेद किया जाता है बेटे और बेटी के बच्चों में |एक बात स्पष्ट देखने को मिली आज के बच्चे प्रेम का अर्थ समझते हैं चूमाचाटी,होटल बाजी और  और उनपर किया जाने वाला व्यय |यदि उनपर नोटों की वर्षा की जाए तो वह प्यार है |आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए उनकी निगाह में कोई स्थान नहीं है |जो मंहगे मंहगे गिफ्ट दे वही सगा है |भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है |
न्यूक्लियर फेमिली में सिखाया जाता है मैं और मेरे बच्चे बाक़ी से क्या मतलब |अब पारिवारिक रिश्ते
होते ही नहीं |हाय हेलो की आधुनिकता से शायद ही कोई  घर बचा हो |माँ की यही शिक्षा रहती है की
जो कुछ करते हैं नाना नानी, मामा मामी करते है चूंकि लिप सिम्पेथी दिखाते रहते है “अरे कोई भी आवश्य्कता हो हमारे पास बहुत है ले जाना “ |नव धनाड्य वर्ग की झांकी यहाँ वहां देखने को मिलती है |चाहे पहले फटी चड्डी में रहे हों अब तो अमीर हैं |व् दूसरों का बोझ उठा सकते  है |
   बीबी यदि कमाती हुई हो तो क्या कहना |आदमी की औकात तो चपरासी  जैसी हो जाती है यदि ससुराल वाले आयें तो पलक पावडे बिछाना हैं और यदि तकदीर के मारे मांबाप पहुँच जाएं तो बच्चे तक ताने देने से बाज नहीं आते |ख़ास बात है की यदि जो व्यय मांबाप पर किया जाता है बच्चों की जरूरतों की कटोती कर किया जाता है |
             शायद मांबाप ने तो कभी कष्ट उठाए ही नहीं पालपोस कर बेटा आने वाली पत्नी को बेच दिया
वही है जो अब सब कर रही है |क्या यह अहसान फरामोशी की इंतहा नहीं है ?

2 comments:

  1. कटु यथार्थ के दर्शन कराती सार्थक प्रस्तुति ! वाकई में कई लोगों की मानसिकता इसी तरह रोगग्रस्त हो चुकी है और उनमें सही गलत, उचित अनुचित का फर्क समझने की क्षमता विकसित ही नहीं हो पाई है !

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