अमृत कलश

Tuesday, March 23, 2021

एक चिड़िया



एक चिड़िया ने खिड़की पर अपना घोंसला बनाया  |वहीं उसने अंडे दिए थे |वह सुबह से भोजन की तलाश में निकल जाती |अनाज ला कर

नन्हें बच्चों को खिलाती |कभी घूप में भी ले जाती|धीरे धीरे वे बड़े होने लगे |एक दिन खुले आसमान में उड़ चले |यह भी भूल गए कि इन्तजार कर रही होगी माँ |चिड़िया का मन बहुत दुखी हुआ |वह उदास हो कर

खिड़की पर आकर बैठ गई |अचानक उसकी दृष्टि अन्दर के शीशे पर पड़ी |उसने अपने जैसी ही एक चिड़िया  शीशे में देखी |वह पास जाकर

अपनी चोंच से उसे घायल करने लगी |सोचा अरे इतना चोटिल कर रही हूँ तब भी भागती क्यूँ नहीं |बार बार चोट करने से उसकी चोंच भी घायल हो गई |बहुत दुखी हो कर उसने अपने घोंसले में जाकर आराम करने की सोची |जब ऊपर देखा घोंसला वहां न था |हमारी बाई ने

सफाई की थी |सोचा खाली घर किस काम का |न घोंसला रहा न चिड़िया के बच्चे |चिड़िया देख रही थी बिखरे हुए  तिनकों को |

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