एक चिड़िया ने खिड़की
पर अपना घोंसला बनाया |वहीं उसने अंडे दिए
थे |वह सुबह से भोजन की तलाश में निकल जाती |अनाज ला कर
नन्हें बच्चों को
खिलाती |कभी घूप में भी ले जाती|धीरे धीरे वे बड़े होने लगे |एक दिन खुले आसमान में
उड़ चले |यह भी भूल गए कि इन्तजार कर रही होगी माँ |चिड़िया का मन बहुत दुखी हुआ |वह
उदास हो कर
खिड़की पर आकर बैठ गई
|अचानक उसकी दृष्टि अन्दर के शीशे पर पड़ी |उसने अपने जैसी ही एक चिड़िया शीशे में देखी |वह पास जाकर
अपनी चोंच से उसे
घायल करने लगी |सोचा अरे इतना चोटिल कर रही हूँ तब भी भागती क्यूँ नहीं |बार बार
चोट करने से उसकी चोंच भी घायल हो गई |बहुत दुखी हो कर उसने अपने घोंसले में जाकर
आराम करने की सोची |जब ऊपर देखा घोंसला वहां न था |हमारी बाई ने
सफाई की थी |सोचा
खाली घर किस काम का |न घोंसला रहा न चिड़िया के बच्चे |चिड़िया देख रही थी बिखरे
हुए तिनकों को |
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