अमृत कलश

Sunday, August 7, 2011

उपमन्यु

आयोधोम्य ऋषि के दूसरे शिष्य का नाम उपमन्यु था |उसकी परिक्षा लेने के लिए भोजन मिलाने के सभी रास्ते बंद कर दीरे |ऋषि की आज्ञा को वेद वाक्य बिना कुछ खाए रहने लगा |एक दिन भूख से व्याकुल हो कर आक के पत्ते खा लिए |फल स्वरुप वह अंधा हो गया और एक कुए में गिर गया |गुरू ने उसे खोजा और कहा कि वह अश्वनी कुमारों का ध्यान करे |अश्वनी कुमार ने उसे पुआ खाने को कहा |उसने मना कर दिया और कहा कि वह बिना गुरू की आज्ञा के कुछ नहीं खाएगा |जब गुरू ने आज्ञा दी तभी पुआखाया और उसकी आँखें अच्छी हो गईं |इस प्रकार गुरु की ली परिक्षा में वह उत्तीर्ण हो गया और आशीष पा कर सफल बना |
आयोधौम्य के शिष्य दूसरे
जिनका था उपमन्यु नाम
गौओं की रक्षा करने का
गुरु ने उनको सौंपा काम |
कठिन परीक्षा लेने की
गुरु ने इक दिन मन में ठानी
ज्ञात हो सके जिससे
है वह कितना वेद विज्ञ ज्ञानी |
एक दिन गुरू ने पूंचा
बेटा क्या तुम खाते हो
जिससे दिन प्रतिदिन तुम
ऐसे मोटे होते जाते हो |
उपमन्यु बोले" गुरुवार
मैं भिक्षा को नित जाता हूँ
जो कुछ भी मिल जाता है
गुरु अर्पण कर खाता हूँ "
गुरु बोले तुम जो कुछ पाते
वह सब कुछ मुझको ला देना
बिना हमारी आज्ञा के
उसमें से कुछ भी मत लेना
एक दिन फिर पूंछा गुरु ने
"भिक्षा मुझ को ला देते
अब भी हो तुम स्वस्थ
कहो खाने को अब क्या लेते "
उसने कहा " दुबारा जा कर
फिर भिक्षा ले आता हूँ
देवों को अर्पित करके
बस उसको ही खा लेता हूँ "
गुरु बोले "यह महा पाप है
लोभ पाप का मूल मन्त्र है
भाग दूसरों का है वह "
मौन हुए गुरु इतना कह |
कुछ दिन बीते गुरु ने पूंछा
उपमन्यु अब क्या खाते
"दूध गाय का पी लेता हूँ
और नहीं कुछ भी भाता "
कहा उन्हों ने "यह आश्रम की
गाएं है यह उचित नहीं
बिना हमारी आज्ञा के
कुछ भी लेना है फलित नहीं "
एक मांह बीता फिर गुरु ने
पूंछा "अब हो क्या खाते
खाने के सब द्वार बंद हैं
फिर भी मोटे दिखलाते "
"बछड़े पीते समय दूध
फैन गिरादेते भर पूर
बस वही आहार है मेरा
अधिक न कुछ लेता ऊपर"
हरे कृष्ण यह महापाप
तुम कैसे कर पाते हो
दयावान बछड़ो को भूखा
रख कर जो तुम खाते हो
दिन चर्या में रत रह कर
उपमन्यु नित जंगल जाता
जड़ी बूटियाँ पत्ते खा
मुश्किल से भूक बुझा पाता
इसी भाँती कुछ दिन बीते
उसे पत्ते भी नहीं मिले नहीं
एक आक का वृक्ष दृष्टिगत
उसको इक दिन हुआ वहीं
तीव्र भूख की ज्वाला से
पीड़ित हो वे पत्ते खाए
फल यह हुआ कि खाते ही
वे नेत्र अपने गवा आए
जब आश्रम को लौटे वे
ऋषि सुत कब अंध कूप में गिरे
न जाना उनने ,खाई ठोकर कब
लौट न आए आश्रम में
बहुत गुरू ने तब हेरा
बोले यूं पुकार "लौटो सुत
अब संध्या की है बेर "
गुरु किया स्वर पहचान कुए से
वे बोले चिल्ला कर
"मैं गिर पड़ा कुए में गुरुवार
आक तरु के पत्ते खा कर
ज्वाला बुझी पेट की लेकिन
नेत्र गँवा बैठा हूँ
इसी लिए ठोकर खा कर के
लेटा अंध कूप में हूँ मैं "
गुरु बोले अश्विनी कुमारों का
अब तुम आव्हान करो
वे देवों के कुशल वैद्य हैं
बस उनका ध्यान धरो "
गुरु आज्ञा पा ध्यान मग्न हो
वैद्यों का आव्हान किया
सुर रक्षक सब रोग दूर
करने वालों का ध्यान किया
प्रगट हुए तब महाँ विद्या
ले औषधि निश्चित पुआ महा
"गुरु आज्ञा बिन ले न सकूंगा
उपमन्यु ने यही कहा
विद्या चकित हो कर बोले
यह दवा बड़ी गुणकारी है
वह बोला पर बिना गुरु के कहे
पाप यह भारी है "
तब आज्ञा दी गुरु ने उसको
खा कर पुआ नेत्र खोलो
गुरु भक्ति से प्रसन्न हो
वैद्य राज उससे बोले
"गुरु के तुम हो महा भक्त
बच्चे हम यह देते आशीष
दांत तुम्हारे सोने के हों
तुम पर कृपा करेंगे ईश "
और गुरु ने कहा तुम्हें सब
वैद शास्त्र होंगे कंठस्थ
कभी न होगी व्याधि तुम्हें कुछ
सदा रहोगे सुन्दर स्वस्थ
गुरु आज्ञा पालन का बच्चों
है कितना सुन्दर परिणाम
जग में छाती कीर्ति अमर
अरु युग युग तक रहता है नाम
अधोम्य के शिष्य सरीखे
यदि हो अब भारत संतान
उन्नति करता रहे देश
छाए सब जग में कीर्ति महान |

किरण




2 comments:

  1. उपमन्यू की यह कहानी बहुत ही प्रेरक एवं सद्भावनापूर्ण है ! मम्मी की लेखनी का जादू अभी तक कायम है देख कर प्रसन्नता होती है !

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  2. उपमन्यु की कथा के साथ माता जी की कविता ने जीवन दर्शन और काव्य लालित्य का संयुक्त रूप से आनंदित कर दिया.
    प्रस्तुति के लिए साधुवाद...

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